वोट चोरी: सत्तारूढ़ पार्टी की नाकामी या साज़िश? लोकतंत्र पर मंडराता खतरा


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वोट चोरी: सत्तारूढ़ पार्टी की नाकामी या साज़िश? लोकतंत्र पर मंडराता खतरा

वोट चोरी: सत्तारूढ़ पार्टी की नाकामी या साज़िश? लोकतंत्र पर मंडराता खतरा

भारत जिसे दुनिया सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जानती है, अपने अस्तित्व के सबसे संवेदनशील दौर से गुजर रहा है। लोकतंत्र का सबसे बड़ा स्तंभ है — जनता का विश्वास। यह विश्वास चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर टिका होता है। लेकिन जब जनता के कानों में यह फुसफुसाहट लगातार गूंजने लगे कि चुनाव में वोट चोरी हो रही है, मशीनें गड़बड़ हैं, मतदाता सूचियों में हेरफेर है — तब यह केवल एक राजनीतिक बहस नहीं रह जाती, बल्कि लोकतंत्र के अस्तित्व पर सीधा सवाल बन जाती है।

पिछले कुछ वर्षों में, भारत की सत्तारूढ़ पार्टी पर बार-बार ऐसे आरोप लगे हैं कि वह चुनावी प्रक्रिया को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए गुप्त रणनीतियाँ अपनाती है। इन आरोपों में EVM (Electronic Voting Machine) की हैकिंग, VVPAT (Voter Verified Paper Audit Trail) पर्चियों में गड़बड़ी, और मतदाता सूचियों से नाम हटाना जैसे गंभीर मुद्दे शामिल हैं। विपक्ष का दावा है कि यह सब कोई आकस्मिक त्रुटि नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साज़िश है।

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1. आरोपों की बुनियाद और जनता की आशंका


भारतीय चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि हर चुनाव में लाखों मतदाता मतदान से वंचित रह जाते हैं। कई बार कारण होता है — मतदाता सूची में नाम गायब होना। लेकिन जब यह पैटर्न बार-बार विपक्षी दलों के गढ़ों में देखा जाए, तो संदेह गहराता है। इसी तरह, कई राज्यों में ऐसी शिकायतें दर्ज हुईं कि जब मतदाता मतदान केंद्र पहुँचे, तो उन्हें बताया गया कि उनका वोट पहले ही “डाल” दिया गया है। यह स्थिति न केवल तकनीकी विफलता बल्कि चुनावी धांधली की तरफ इशारा करती है।

EVM मशीनों को लेकर भी विवाद कम नहीं है। भले ही चुनाव आयोग बार-बार दावा करता है कि ये मशीनें टैंपर-प्रूफ हैं, लेकिन विपक्ष का कहना है कि इनके सॉफ़्टवेयर में बदलाव कर नतीजों को प्रभावित किया जा सकता है।

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2. नाकामी का बहाना या साज़िश का खेल?


यहाँ दो मुख्य दृष्टिकोण बनते हैं:

नाकामी: अगर मान लें कि यह सब चुनाव आयोग और प्रशासन की लापरवाही है, तो यह नाकामी इतनी गंभीर है कि इससे पूरी चुनावी प्रक्रिया पर अविश्वास हो सकता है। सत्तारूढ़ पार्टी, जो व्यवस्था की सर्वोच्च ज़िम्मेदार है, इससे बच नहीं सकती।

साज़िश: दूसरी ओर, अगर यह साबित हो जाए कि ये घटनाएँ योजनाबद्ध तरीके से की गईं, तो यह लोकतंत्र के खिलाफ सबसे बड़ा अपराध है — जिसमें जनता की आवाज़ को दबाकर सत्ता पर कब्ज़ा किया गया।

समस्या यह है कि बार-बार होने वाली “संयोगवश गड़बड़ियाँ” अब महज़ संयोग नहीं लगतीं। चाहे वह मतदाता सूची से नाम हटाना हो, चाहे VVPAT पर्चियों का सीमित मिलान करना, या विपक्षी कार्यकर्ताओं पर मतदान केंद्रों से पहले दबाव डालना — यह सब एक संगठित रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है।

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3. लोकतंत्र पर असर और खतरे की घंटी


वोट चोरी का असर केवल एक चुनाव के नतीजों तक सीमित नहीं है। इसके परिणाम बेहद गहरे और दूरगामी हैं:


1. जनता का विश्वास टूटना: अगर मतदाता को यह भरोसा ही न रहे कि उसका वोट गिना जाएगा, तो वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया से दूर हो जाएगा।

2. राजनीतिक अस्थिरता: जनता के असंतोष के कारण बड़े पैमाने पर आंदोलन और विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं।

3. संस्थाओं का पतन: चुनाव आयोग, न्यायपालिका और अन्य लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख पर गहरा धब्बा लगता है।

4. हिंसा और ध्रुवीकरण: चुनावी धांधली से राजनीतिक टकराव और हिंसा की घटनाएँ बढ़ सकती हैं, जिससे समाज में विभाजन गहरा होता है।

भारत का लोकतंत्र केवल चुनाव कराने से नहीं चलता, बल्कि इस भरोसे से चलता है कि हर नागरिक का वोट बराबर और सुरक्षित है। अगर यह भरोसा टूट गया, तो लोकतंत्र का ढांचा खोखला हो जाएगा।

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4. समाधान: पारदर्शिता ही एकमात्र रास्ता

अगर सत्तारूढ़ पार्टी सचमुच इन आरोपों में निर्दोष है, तो उसे खुद पहल करके पारदर्शी जांच की मांग करनी चाहिए। इसके लिए कुछ ठोस कदम ज़रूरी हैं:


VVPAT का 100% मिलान: वर्तमान में केवल कुछ मशीनों की पर्चियों का मिलान किया जाता है, जबकि सभी का मिलान अनिवार्य होना चाहिए।

मतदाता सूची का वार्षिक ऑडिट: सभी राजनीतिक दलों की मौजूदगी में, मतदाता सूची का स्वतंत्र और निष्पक्ष सत्यापन किया जाए।

चुनावी प्रक्रिया पर न्यायिक निगरानी: उच्चतम न्यायालय की देखरेख में चुनाव कराए जाएँ, ताकि किसी भी तरह की धांधली की गुंजाइश न बचे।

कड़ी कानूनी सज़ा: वोट चोरी में शामिल किसी भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी पद पर हो, को सख़्त सज़ा दी जाए।

तकनीकी पारदर्शिता: EVM के सॉफ़्टवेयर और हार्डवेयर की स्वतंत्र ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।

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5. निष्कर्ष: सत्ता से बड़ा है लोकतंत्र


भारत का लोकतंत्र दुनिया के लिए एक मिसाल रहा है। लेकिन अगर सत्ता के लालच में वोट चोरी को सहन या बढ़ावा दिया गया, तो यह मिसाल कलंक में बदल जाएगी।


सत्तारूढ़ पार्टी के लिए यह समय है कि वह साबित करे कि उसकी जीत केवल जनमत से होती है, न कि किसी गुप्त तंत्र की मदद से। अगर वह इस पारदर्शिता को अपनाती है, तो यह न केवल उसके राजनीतिक भविष्य को मज़बूत करेगा, बल्कि भारत के लोकतंत्र की नींव को भी मजबूत बनाएगा।

लेकिन अगर उसने इन आरोपों को नकारते हुए, कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो आने वाली पीढ़ियाँ इसे याद रखेंगी — एक ऐसे दौर के रूप में, जब लोकतंत्र की रक्षा के बजाय सत्ता ने उसे खोखला किया।

लोकतंत्र का भविष्य जनता के हाथ में है, लेकिन जनता की आवाज़ केवल तभी सुनी जाएगी, जब उसका वोट सुरक्षित और गिना जाएगा। यही वह बुनियाद है, जिस पर 

भारत खड़ा है — और यही बुनियाद अगर हिल गई, तो पूरा ढांचा गिरने में देर नहीं लगेगी।


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