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| कांग्रेस और भ्रष्टाचार: इतिहास, प्रमुख आरोप और तथ्य | भ्रष्टाचार की सच्चाई |
प्रस्तावना: मुद्दा केवल “कौन” नहीं, “कैसे” भी
भारत के सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर बहस अक्सर किसी एक दल/नेता के इर्द-गिर्द सिमट जाती है। पर इतिहास बताता है कि यह समस्या केवल व्यक्तियों की नहीं, संस्थागत डिज़ाइन, नियमों की अस्पष्टता, विवेकाधीन शक्तियों और कमज़ोर निगरानी से भी पैदा होती है। कांग्रेस ने भारतीय राजनीति के लंबे दौर में (केंद्र और कई राज्यों में) सत्ता संभाली—इसलिए स्वाभाविक है कि भ्रष्टाचार/दुरुपयोग के चर्चित मामलों का बड़ा हिस्सा उसके शासनकाल या उसके नेतृत्व वाले गठबंधनों से जुड़ा दिखे। इस लेख में हम प्रमुख मामलों की पृष्ठभूमि, आरोप, जाँच/न्यायिक स्थिति, राशि/तिथियों के तथ्य और उनके नीति–आर्थिक प्रभाव को क्रमबद्ध तरीके से रखते हैं—साथ ही यह भी कि किन मामलों में अदालतों ने आरोपों को खारिज किया या जाँच एजेंसियाँ असफल रहीं।
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पद्धति और स्रोत
प्राथमिक स्रोत: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्टें, सर्वोच्च/उच्च न्यायालय के आदेश, CBI/ED के दस्तावेज़, और विश्वसनीय राष्ट्रीय मीडिया के लेख।
रकम/तिथियाँ: जहाँ रिपोर्ट/आदेश में दी गयी हों, वहीं से; अन्यथा प्रतिष्ठित प्रकाशनों से।
तटस्थता: “आरोप” और “निर्णय/वर्तमान स्थिति” अलग-अलग लिखे गये हैं।
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भाग—1: आज़ादी के बाद के शुरुआती दशक
1) 1948 का “जीप स्कैंडल” (रक्षा ख़रीद)
पृष्ठभूमि: आज़ादी के बाद ब्रिटेन से सैन्य जीपों की त्वरित ख़रीद में कथित अनियमितताएँ—लंदन उच्चायोग में वी.के. कृष्ण मेनन पर सवाल।
क्या हुआ?: यह मामला भारतीय भ्रष्टाचार विमर्श का प्रारम्भिक प्रतीक बना; तथापि विस्तृत दंडात्मक निष्कर्ष उपलब्ध नहीं—यह ज़्यादा राजनीतिक/प्रशासनिक जवाबदेही का मुद्दा रहा। (इतिहासलेखन/द्वितीयक स्रोत)
2) 1957 का “मुंद्रा कांड” (LIC निवेश)
पृष्ठभूमि: लाइफ़ इन्श्योरेन्स कॉरपोरेशन (LIC) द्वारा उद्योगपति हरिदास मुंद्रा की कंपनियों में निवेश; लोकसभा में फिरोज़ गांधी के खुलासे; जस्टिस विवियन बोस आयोग।
परिणाम: वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी ने इस्तीफ़ा दिया; यह मामला संसदीय जवाबदेही व सार्वजनिक उपक्रमों की निगरानी का मिसाल बना। (समकालीन संसदीय/इतिहास स्रोत)
3) ए.आर. अंतुले “ट्रस्ट/सीमेंट कोटा” मामला (1981–82, महाराष्ट्र)
पृष्ठभूमि: मुख्यमंत्री अंतुले पर आरोप कि सीमेंट कोटे/परियोजनाओं से जुड़े दान उनके ट्रस्टों तक गए।
न्यायिक उलझन: 1980 के दशक में बंबई हाईकोर्ट/सुप्रीम कोर्ट के आदेश मुख्यतः “क्षेत्राधिकार और प्रक्रिया” पर केन्द्रित रहे—मामले की कानूनी यात्रा जटिल है और आख़िरी आपराधिक दोष सिद्धि के रूप में सरल निष्कर्ष प्रकट नहीं होता; अंतुले को पद त्यागना पड़ा। (न्यायालयीन अभिलेख/इतिहास स्रोत)
4) बोफोर्स हॉवित्ज़र (1980s)
आरोप: 155 मिमी हॉवित्ज़र ख़रीद में कथित कमीशन/दुरुपयोग; राजीव गांधी तक आरोपों की राजनीतिक लपटें पहुँचीं।
न्यायिक स्थिति: 4 फ़रवरी 2004 को दिल्ली हाईकोर्ट ने राजीव गांधी के ख़िलाफ़ आरोप ख़ारिज कर दिए। बाद के वर्षों में भी भारत में दोषसिद्धि नहीं हो सकी; मामला धीरे-धीरे ठंडा पड़ा।
5) HDW पनडुब्बी सौदा (देर 1980s–2000s)
आरोप/जाँच: जर्मन कंपनी HDW की SSK पनडुब्बियों के सौदे में कमीशन के आरोप; जाँच चली, पर निर्णायक अभियोजन नहीं हुआ। 2005 के आसपास न्यायालय/एजेंसियों के स्तर पर “पर्याप्त साक्ष्य के अभाव” जैसी स्थिति आती दिखी। (समाचार/न्यायिक सार-संदर्भ)
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भाग—2: उदारीकरण का दौर—वित्तीय बाज़ार और संस्थागत सबक
6) 1992 का हर्षद मेहता/सिक्योरिटीज़ स्कैम
पृष्ठभूमि: बैंक–दलाल लेन-देन, SGL/BR के दुरुपयोग से शेयर बाज़ार में बुलबुला और ढहाव; लाखों निवेशक प्रभावित।
संस्थागत प्रतिक्रिया: RBI की जनकिरामन समिति और संसद की जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) ने खामियाँ चिन्हित कीं; SEBI का क़ानूनी सुदृढ़ीकरण हुआ। (RBI/जेजेसी/जेपीसी दस्तावेज़)
7) जैन हवाला और Vineet Narain (1997) का ऐतिहासिक फैसला
महत्त्व: सुप्रीम कोर्ट ने CBI/CVC की स्वायत्तता बढ़ाने और “सिंगल डायरेक्टिव” जैसे निर्देशों की समीक्षा जैसी ऐतिहासिक बातें कहीं—भविष्य की भ्रष्टाचार जाँचों की संस्थागत रीढ़ बनीं। यह निर्णय सीधे किसी एक दल को नहीं, बल्कि “प्रणाली” को लक्षित करता है।
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भाग—3: UPA युग (2004–14) के चर्चित प्रकरण
> इस खंड में तीन बड़े मामलों—2G, कोयला आवंटन और कॉमनवेल्थ गेम्स—की “राशि/तिथियाँ/आरोप” तथा “न्यायिक स्थिति/नीतिगत असर” अलग-अलग रखे गए हैं ताकि विवरण संतुलित रहे।
8) 2G स्पेक्ट्रम आवंटन (2007–2008)
आरोप और राशियाँ: CAG ने 2010 की रिपोर्ट में “प्रेज़म्प्टिव लॉस” (आकंलित/संभावित हानि) ₹1.76 लाख करोड़ तक बताया—दलील थी कि प्रतिस्पर्धी नीलामी के बजाय “पहले आओ–पहले पाओ” (2001 की कीमत) से लाइसेंस दिए गए, जिससे राजस्व की भारी क्षति हुई।
न्यायिक स्थिति:
2 फ़रवरी 2012: सुप्रीम कोर्ट ने 122 लाइसेंस रद्द किए—प्रक्रिया को मनमाना/मनोगत पाया; साथ ही, नीति–निर्धारण में पारदर्शी नीलामी की ओर संकेत मिला।
दिसंबर 2017: विशेष CBI अदालत (जज ओ.पी. सैनी) ने आपराधिक मुक़दमे में ए. राजा, कनीमोझी सहित सभी अभियुक्तों को बरी किया—अदालत ने कहा कि अभियोजन “विश्वसनीय साक्ष्य” नहीं दे सका। (बाद में CBI/ED ने अपीलें दायर कीं)
मार्च 2024: दिल्ली हाईकोर्ट ने CBI की अपील स्वीकार कर विस्तृत सुनवाई का निर्णय दिया—मतलब कि बरी होने का आदेश अंतिम नहीं है; प्रकरण न्यायिक रूप से जीवित है।
नीतिगत असर: 2012 के बाद स्पेक्ट्रम नीलामियों का दौर; टेलीकॉम नीति में पारदर्शिता/राजस्व अधिक सुनिश्चित करने पर बल। (DoT/नीलामी नीति—सार्वजनिक रिकॉर्ड)
9) कोयला आवंटन (Coalgate, 1993–2010)
आरोप और राशियाँ: CAG (2012) ने “प्रेज़म्प्टिव लॉस” ₹1.86 लाख करोड़ आँका—दलील कि बिना प्रतिस्पर्धी नीलामी के ब्लॉक्स आवंटित होने से संभावित राजस्व हानि हुई।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक हस्तक्षेप (2014): अदालत ने 200 से अधिक (लगभग 204/214) ब्लॉक्स के आवंटन रद्द कर दिए और प्रणाली को “कानूनी/पारदर्शी ढंग” से रीसेट किया। यह आदेश नीति-निर्माण में नीलामी के महत्त्व को रेखांकित करता है।
आपराधिक मुक़दमे: कुछ मामलों में पूर्व कोयला सचिव एच.सी. गुप्ता आदि की दोषसिद्धि/सज़ाएँ हुईं; वहीं कई मामलों में बरी भी—यानि केस-टू-केस आधार पर अलग नतीजे। हाल में 2025 में एक मामले में HC गुप्ता की बरी भी हुई; अन्य में चार दोषसिद्धियाँ/आदेश दर्ज हैं—जाँच/ट्रायल की गतिशील स्थिति बनी हुई है।
नीतिगत असर: 2015 से व्यावसायिक और कैप्टिव कोल ब्लॉक्स के लिए नीलामी–आधारित ढाँचा; संसाधन आवंटन की पारदर्शिता बढ़ी। (नीति/अधिसूचनाएँ—सार्वजनिक रिकॉर्ड)
10) 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG) तैयारियाँ—ठेकों/खर्च पर सवाल
आरोप: ओवर-इन्वॉयसिंग, टेंट/टाइमिंग-स्कोरिंग/बोर्डिंग जैसे ठेकों में अनियमितताएँ; कुल खर्च अक्सर ₹70,000 करोड़ के पैमाने पर उद्धृत—ध्यान रहे, यह “गेम्स आयोजन से जुड़े समग्र सार्वजनिक खर्च” का मोटा अनुमान है, न कि सिद्ध आपराधिक ‘हानि’। CAG/अन्य ऑडिट में प्रक्रियागत कमियाँ रेखांकित हुईं। (CAG/शुंगलू समिति/विश्वसनीय मीडिया)
जाँच/न्यायिक स्थिति: आयोजक समिति प्रमुख सुरेश कलमाड़ी की गिरफ्तारी (2011) हुई थी; वर्षों की जाँच के बाद 2016 में CBI का मूल मामला बंद हुआ और अप्रैल 2025 में ED की मनी-लॉन्ड्रिंग जाँच पर दिल्ली की अदालत ने क्लोज़र रिपोर्ट स्वीकार कर ली—अर्थात् इस विशेष प्रकरण में “प्रवर्तनयोग्य अपराध की आय (proceeds of crime)” का आधार नहीं बना।
11) आदर्श हाउसिंग सोसाइटी (मुम्बई)
आरोप: मरीन ड्राइव/कोलाबा क्षेत्र में रक्षा भूमि/नियमों के उल्लंघन से “युद्ध वीरांगनाओं/शहीदों के लिए आवंटन” की आड़ में प्रभावशाली लोगों को फ़्लैट—राजनीतिज्ञों/अधिकारियों पर उंगलियाँ।
न्यायिक/प्रशासकीय स्थिति: 2016 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र के ध्वस्तीकरण आदेश को निरस्त किया, पर CBI जाँच/जवाबदेही प्रक्रिया जारी रखने को कहा। समय-समय पर कुछ अभियुक्तों को डिस्चार्ज/बरी और कुछ पर कार्यवाही—स्थिति मिश्रित।
12) अगस्ता–वेस्टलैंड VVIP हेलिकॉप्टर (₹3,600 करोड़)
आरोप: VVIP हेलिकॉप्टर ख़रीद में कमीशन/ब्राइब—बिचौलिये, वैश्विक कनेक्शन; 2018 में क्रिश्चियन मिशेल को दुबई से प्रत्यर्पित किया गया। भारत में CBI/ED की जाँच-प्रक्रिया जारी।
हालिया स्थिति (2025): मिशेल की रिहाई/क़ानूनी राहत के आग्रह को हाल में अदालत ने ठुकराया; एजेंसियाँ कह रही हैं कि मामला अभी अधूरा है—ट्रायल और क़ानूनी बहस चल रही है। (भारत में अभी तक अंतिम दोषसिद्धि नहीं)
13) नेशनल हेराल्ड/यंग इंडियन–AJL
आरोप: कांग्रेस द्वारा ₹90.25 करोड़ के बिना-ब्याज ऋण, AJL की परिसंपत्तियों के अधिग्रहण/हस्तांतरण में अनियमितता, PMLA के तहत “प्रोसीड्स ऑफ क्राइम” का आरोप; ₹600–750+ करोड़ की संपत्तियों की अटैचमेंट/पजेशन नोटिस जैसी कार्रवाइयाँ।
वर्तमान स्थिति: प्रकरण अदालतों में लंबित—कई आदेश केवल कर/लैंड-लीज़/प्रोसीजर पर रहे हैं; 2018 में दिल्ली HC ने लैंड एंड डेवलपमेंट ऑफ़िस द्वारा AJL की बेदखली के हक़ में आदेश दिया (बाद में उच्च अदालतों में विभिन्न स्थगन/चुनौती भी); 2023–25 में ED द्वारा बड़े पैमाने पर अटैचमेंट और अप्रैल 2025 में संपत्तियों की पज़ेशन की नोटिस—क़ानूनी लड़ाई जारी है; अंतिम दोषसिद्धि/निर्दोषता का फैसला नहीं।
14) एयरसेल–मैक्सिस/INX मीडिया (FIPB अनुमतियाँ)
आरोप: 2006–08 के दौर में FIPB स्वीकृतियों में अनियमितता/उल्लंघन; P. चिदंबरम/कार्ति चिदंबरम पर एजेंसियों के केस; 2019 में गिरफ़्तारी/जमानत—ट्रायल लंबित। (उच्च न्यायालय/एजेंसी रिकॉर्ड/विश्वसनीय मीडिया)
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भाग—4: राज्य–स्तर और अन्य बहुचर्चित प्रकरण
15) तेलगी स्टाम्प पेपर स्कैम (2000s; महाराष्ट्र सहित कई राज्य)
आरोप/रकम: जाली स्टाम्प की देशव्यापी रैकेट—लोकप्रिय प्रेस में ₹30,000 करोड़ तक का “अनुमान” उद्धृत; पर जाँच एजेंसियों/अदालतों के समक्ष “प्रत्यक्ष वित्तीय हानि” के आधिकारिक आंकड़ों में विविधता रही। टेलगी को 2006 से कई दोषसिद्धियाँ मिलीं; यह मामला राज्यों, पुलिस, प्रिंटिंग प्रेस, बिचौलियों तक फैले तंत्रगत भ्रष्टाचार का संकेतक है। (CBI/अदालत/मीडिया के विविध स्रोत)
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एक सार-सारणी (प्रमुख मामले, राशि/तिथि, वर्तमान स्थिति)
> ध्यान दें: 2G/कोयला में CAG की राशि “प्रेज़म्प्टिव लॉस” है—यह “सिद्ध आपराधिक हानि” नहीं होती; अदालतें कई मामलों में अलग निष्कर्ष पर पहुँचीं।
मामला अवधि/वर्ष आरोपित राशि/पैमाना वर्तमान न्यायिक स्थिति (संक्षेप)
2G स्पेक्ट्रम 2007–10 ₹1.76 लाख करोड़ (CAG अनुमान) 2012 में 122 लाइसेंस रद्द (SC); 2017 में सभी अभियुक्त बरी (स्पेशल कोर्ट); 2024 से हाईकोर्ट में CBI/ED की अपीलें लंबित।
कोयला आवंटन 1993–2010 ₹1.86 लाख करोड़ (CAG अनुमान) 2014 में 200+ ब्लॉक्स रद्द (SC); कुछ केसों में दोषसिद्धि/कुछ में बरी—मिश्रित स्थिति; नीलामी-आधारित नई नीति।
CWG (दिल्ली) 2010 कुल सार्वजनिक खर्च ~₹70,000 करोड़ (अनुमानित पैमाना) 2016 में CBI केस बंद; 2025 में ED क्लोज़र रिपोर्ट स्वीकार—मनी-लॉन्ड्रिंग का आधार नहीं मिला।
आदर्श सोसायटी 2003–10 – 2016 में HC ने ध्वस्तीकरण आदेश रद्द किया; जाँच/ट्रायल भिन्न-भिन्न परिणामों के साथ जारी/समाप्त।
अगस्ता–वेस्टलैंड 2010–13 सौदा ₹3,600 करोड़ 2018 में क्रिश्चियन मिशेल का प्रत्यर्पण; 2025 में रिहाई याचिका ख़ारिज—ट्रायल जारी; अंतिम दोषसिद्धि नहीं।
नेशनल हेराल्ड/Young Indian–AJL 2012– ED द्वारा ₹600–750+ करोड़ की अटैचमेंट/पज़ेशन नोटिस कई मोर्चों पर मुक़दमे/अपीलें जारी; अंतिम निर्णय शेष।
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अदालतें क्या कहती हैं: “आरोप” बनाम “सिद्ध अपराध”
2G में सुप्रीम कोर्ट का 2012 का आदेश नीति/प्रक्रिया (लाइसेंस रद्द) पर था; आपराधिक ट्रायल में 2017 की बरी—यानी आपराधिक मानक (बियॉन्ड रीज़नेबल डाउट) पर अभियोजन असफल रहा। और अब अपील लंबित है—कहानी समाप्त नहीं हुई।
कोयला में सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक रूप से आवंटन “अवैध/मनमाना” पाया और रद्द कर दिया; पर हर आपराधिक केस अलग—कुछ में सज़ाएँ, कुछ में बरी, कई में ट्रायल जारी।
CWG में सालों की जाँचों के बाद मनी-लॉन्ड्रिंग का मामला अदालत ने बंद करने दिया—यह बताता है कि “खर्च/ओवररन” और “सिद्ध अपराध के आर्थिक लाभ” में फ़र्क होता है।
अगस्ता–वेस्टलैंड में ट्रायल/कस्टडी पर खींचतान जारी; फैसला शेष।
नेशनल हेराल्ड में कर/लीज़/पीएमएलए—तीनों मोर्चों पर अलग-अलग कार्यवाही; अंतिम नतीजा अभी बाकी।
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क्या ये “सिर्फ़ व्यक्ति” के मामले हैं?—लोकनीति का परिप्रेक्ष्य
1. संसाधन आवंटन का तरीका
2G/कोयला—दोनों में सर्वोच्च न्यायालय ने संकेत दिया कि प्रतिस्पर्धी नीलामी पारदर्शिता व सार्वजनिक हित को सुनिश्चित करने में बेहतर साधन है। 2012 से स्पेक्ट्रम, 2015 से कोयला ब्लॉक्स—नीलामी के ज़रिये राजस्व बढ़ा; नीतिगत अस्पष्टता घटाई गई। (SC आदेश/नीति परिवर्तन का प्रत्यक्ष प्रभाव)
2. CBI–CVC की स्वायत्तता
Vineet Narain (1997) ने जाँच एजेंसियों की संरचनात्मक स्वायत्तता/निगरानी पर जो दिशा-निर्देश दिए, वे आगे के दशकों में सभी “सत्ताओं” के लिए लागू हुए—कांग्रेस/ग़ैर–कांग्रेस, सभी।
3. RTI (2005)
सूचना का अधिकार अधिनियम ने फ़ाइल-स्तर तक पारदर्शिता बढ़ाई। यह UPA-1 (कांग्रेस नेतृत्व) के दौरान आया—पर इसके बाद सत्ता कोई भी हो, नागरिक–माध्यम–न्यायालय सभी RTI को भ्रष्टाचार-निरोधक औज़ार की तरह उपयोग करते रहे।
4. लोकपाल/पीसी एक्ट
लोकपाल की स्थापना (2013 क़ानून; 2019 से नियुक्ति) और Prevention of Corruption Act में 2018 संशोधन (जैसे धारा 17A—पूर्व स्वीकृति)—ये बदलाव “भ्रष्टाचार बनाम प्रशासनिक निर्णय” के धुंधले क्षेत्र में संतुलन खोजने की कोशिश हैं। (कानून/अधिसूचना/PRS सार)
5. मेगा-इवेंट्स बनाम आपराधिक हानि
CWG जैसे मामलों में “खर्च बहुत हुआ” ≠ “प्रोसीड्स ऑफ क्राइम”; ED/CBI को अदालत में यह साबित करना होता है कि किसी ने ग़ैर–कानूनी आर्थिक लाभ उठाया। इस अंतर को समझे बिना महज़ रकम की तुलना से निष्कर्ष गलत हो सकते हैं।
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कांग्रेस की दलीलें क्या रही हैं?
2G: “CAG की राशि ‘प्रेज़म्प्टिव’ है; नीति-निर्णय में वैध विवेक था; 2017 में ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन की कहानी पर सवाल उठाए।” (आपराधिक बरी/अपील लंबित)
कोयला: “ऐतिहासिक कारणों से स्क्रिनिंग कमेटी–आधारित मॉडल चला; हर आवंटन में आपराधिक मंशा नहीं थी; अदालत ने प्रक्रिया रद्द की, पर हर केस के तथ्य अलग हैं।” (मिश्रित ट्रायल परिणाम)
CWG: “बड़े अंतरराष्ट्रीय आयोजन में लागतें बढ़ती हैं; ‘मनी-लॉन्ड्रिंग/प्रोसीड्स’ साबित नहीं।” (ED क्लोज़र)
नेशनल हेराल्ड: “AJL/यंग इंडियन में ‘सार्वजनिक हित/पार्टी फंडिंग’ और ‘कॉरपोरेट/ट्रस्ट’ व्यवस्था की वैधता का मसला; जाँच/ट्रायल में अपना पक्ष रखेंगे।” (मामला लंबित)
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विपक्ष/आलोचकों की आपत्तियाँ
CAG के ₹1.76 और ₹1.86 लाख करोड़ जैसे आंकड़ों को वे “राजकोषीय नुकसान की प्रतीकात्मक पराकाष्ठा” बताते हैं; 2G में SC द्वारा लाइसेंस रद्द और कोयला में ब्लॉक्स निरस्त होना उनके लिए “नीति स्तरीय दोष” का प्रमाण है।
नेशनल हेराल्ड/अगस्ता में अटैचमेंट/प्रत्यर्पण/कस्टडी—आलोचक इन्हें “धुएँ के साथ आग” जैसा मानते हैं; कांग्रेस इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” बताती है। मामलों का न्यायिक निर्णय ही अंतिम कसौटी होगा।
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अर्थव्यवस्था और शासन पर प्रभाव
1. नीलामी से राजस्व/पूर्वानुमेयता: संसाधन–आवंटन में नीलामी ने निवेशकों को स्पष्टता दी—हालाँकि “उच्च बोली = उच्च टैरिफ/कास्ट पास-थ्रू” जैसे सेकेंड-ऑर्डर प्रभाव भी आते हैं। 2G/कोयला प्रकरणों के बाद यह बहस परिपक्व हुई। (नीति/SC आदेश)
2. एजेंसियों का प्रोफेशनलाइज़ेशन: Vineet Narain के बाद CBI/CVC/ED की प्रक्रियाएँ कानूनी मायनों में मज़बूत हुईं—पर संसाधन, विशेषज्ञता और “राजनीतिक ताप” का दबाव बना रहता है।
3. राजनीतिक जोखिम: हाई-प्रोफ़ाइल मामलों से शासन का ध्यान बँटता है; नीति–निर्माण सावधानीपूर्वक (कभी-कभी रिस्क–अवर्स) हो जाता है; फ़ाइल–फ़ोबिया भी देखा गया—जिससे निर्णय में देरी, परियोजनाओं पर असर। (नीति विमर्श/विधि लेखक)
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“रकम” पढ़ते समय सावधानियाँ
CAG की “प्रेज़म्प्टिव लॉस” का मतलब है—“जो वैकल्पिक नीति (नीलामी) अपनायी जाती तो संभावित रूप से सरकार को कितना अधिक मिल सकता था।” यह आपराधिक दोष का स्वतः प्रमाण नहीं। 2G में यही हुआ—नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने कदम उठाया, मगर आपराधिक कोर्ट में अभियोजन साक्ष्य पर खरा नहीं उतरा; अब अपीलें विचाराधीन हैं।
कुल आयोजन–खर्च (CWG) और प्रोसीड्स ऑफ क्राइम दो अलग चीज़ें हैं—ED की क्लोज़र रिपोर्ट स्वीकार करना इसी फ़र्क को रेखांकित करता है।
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क्या “कांग्रेस = भ्रष्टाचार” कहना न्यायसंगत है?
इतिहास का ईमानदार पाठ यह कहता है—कांग्रेस के लंबे शासन काल में कई बड़े घोटाले/अनियमितताएँ सामने आईं; यह भी सच है कि कई मामलों में अदालतों ने आरोप नहीं टिके कहकर बरी किया या एजेंसियाँ पर्याप्त साक्ष्य नहीं दे सकीं; कई मामलों में नीति–स्तरीय सुधार (RTI, नीलामियाँ, Vineet Narain-प्रेरित संस्थागत परिवर्तन) भी इसी दौर में हुए। समान रूप से, ग़ैर–कांग्रेस सरकारों/राज्यों में भी—तेलगी, fodder, खनन, शराब, भर्ती, ठेका—अनगिनत मामले सामने आए। अतः समस्या प्रणालीगत है और राजनीतिक अर्थव्यवस्था (rent-seeking अवसर, विवेकाधीन शक्तियाँ, कमज़ोर निगरानी) में निहित रहती है।
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आगे की राह: पाँच ठोस नीति–सीख
1. नीलामी/टेंडर का डिफ़ॉल्ट: प्राकृतिक संसाधन/इन्फ्रास्ट्रक्चर/स्पेक्ट्रम—जहाँ संभव हो, पारदर्शी नीलामी; अपवादों के लिए स्पष्ट, सार्वजनिक कारण। (2G/कोल के बाद का पाठ)
2. एजेंसियों की स्वायत्तता और क्षमता: CBI/ED/CVC को राजनीतिकप्रशासनिक हस्तक्षेप से इंसुलेशन और डोमेन–विशेषज्ञ (अकाउंटिंग, सेक्टोरल इकॉनॉमिक्स, फॉरेंसिक) की स्थायी कैडरिंग। Vineet Narain की भावना—व्यवहार में।
3. रीयल-टाइम डिस्क्लोज़र: बड़े ठेकों/आवंटनों की मशीन-रीडेबल डेटा–रूम, बिड–शीट्स, मूल्यांकन अंक, सभी सार्वजनिक (संवेदनशील गोपनीयता छोड़कर) ताकि मीडिया/नागरिक/विपक्ष समय रहते जाँच सकें।
4. पोस्ट-ऑडिट और “लर्निंग लूप”: CAG/आंतरिक ऑडिट के निष्कर्षों पर समयबद्ध सार्वजनिक एक्शन–टेकन रिपोर्ट; जिन मामलों में अभियोजन विफल, वहाँ “क्यों?” पर संस्थागत आत्ममूल्यांकन।
5. राजनीतिक फंडिंग की पारदर्शिता: कैश/अनट्रेसेबल स्रोतों को सीमित करना; चुनावी बॉण्ड बहस के बाद सबक—नामित/ऑडिटेबल/रियल-टाइम रिपोर्टिंग की दिशा में सर्वदलीय सहमति।
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निष्कर्ष: आरोप, निर्णय और लोकतांत्रिक परिपक्वता
“कांग्रेस और भ्रष्टाचार” का इतिहास सिर्फ़ घोटालों की सूची नहीं—यह भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं के सीखने का भी इतिहास है। कुछ मामलों में—2G/कोयला—नीतिगत अदालती हस्तक्षेप ने पूरे सेक्टर के नियम बदल दिए; कुछ में—CWG/अगस्ता/नेशनल हेराल्ड—मामले अभी भी न्यायालयों में लंबित हैं या क्लोज़र/अटैचमेंट जैसी अवस्थाओं पर हैं; कुछ पुरानी फाइलें—बोफोर्स/HDW—राजनीतिक प्रतीक भर रह गईं। इसलिए कोई भी समग्र निष्कर्ष एक वाक्य में बाँधा नहीं जा सकता।
आप किस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप—
CAG की “प्रेज़म्प्टिव” रकम, सुप्रीम कोर्ट के नीति–स्तरीय आदेश, आपराधिक ट्रायल के परिणाम, और एजेंसियों की सफल/असफल जाँच— इन सबको कितनी वेटिंग देते हैं। लोकतांत्रिक समाज में सवाल पूछना ज़रूरी है, पर साक्ष्य, प्रक्रिया और न्यायिक फ़ैसलों की बारीकियों को साथ लेकर। यही परिपक्वता हमें अगली त्रुटि से बचाती है।
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संदर्भ (चयनित, लोड–बेयरिंग)
2G: CAG 2010 परफ़ॉर्मेंस ऑडिट; SC (2012) लाइसेंस रद्द; स्पेशल कोर्ट बरी (2017); HC में CBI अपील (2024 स्वीकार)।
कोल: CAG 2012; SC (2014) ब्लॉक्स रद्द; केस-टू-केस ट्रायल—दोषसिद्धि/बरी दोनों; हालिया आदेश।
CWG: जाँच का समापन–प्रवर्तन के लिहाज़ से ED क्लोज़र (2025) स्वीकार; पृष्ठभूमि कवरेज।
अगस्ता–वेस्टलैंड: प्रत्यर्पण (2018); 2025 में रिहाई–अर्ज़ी ख़ारिज; ट्रायल जारी।
नेशनल हेराल्ड/AJL–Young Indian: लीज़/कर/ED कार्रवाई—2018 HC आदेश; 2023–25 अटैचमेंट/पज़ेशन नोटिस—मामला लंबित।
संस्थागत सुधार: Vineet Narain (1997)—CBI/CVC की स्वायत्तता/निगरानी।

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